बुधवार, 13 नवंबर 2024

समय की बात!

 उम्र खर्च हो गया

विशेषज्ञ सोचे-समझे,

बहुत पैसे कमाने के लिए,

धनी आज बहुत हैं।

रखने की जगह नहीं,

बस चुप हो गया।

वक़्त ही नहीं मिला संभालें,

जैसे भी थे, कुछ तो करीब थे।

कम अमीर थे,

लेकिन दिल से अनमोल थे,

तब शायद हम खुशनसीब थे।

©रेखा

शनिवार, 2 नवंबर 2024

स्वयंभू !

 स्वयंभू 

बनने की होड़ में 

सर्वनाश पर तुले हैं 

सब कुछ मिटा कर,

हम किसको दिखाएंगे अपने वर्चस्व?

कौन करेगा हमारी जय जयकार?

एक आम इंसान क्या चाहता है ?

पूछा है किसी से 

नहीं तो 

फिर लड़ क्यों रहे हैं ?

मर वो रहे हैं , जिनको कुछ लेना देना नहीं है। 

फिर दुहरा रहे इतिहास हैं 

हम क्या सीख कुछ न पाए ?

इंसान बनने की बजाय हम 

हत्यारे बन चुके हैं ?

क्या फिर महाभारत अपने को दुहरायेगा?

कौन किस पर राज करेगा?

कौन कौन बच कर फिर चैन से जियेगा?

इतने विनाश और हत्याओं के बाद 

नींद किसको आएगी ? 

शर्वशक्तिमन होने का परचम लेकर कौन खड़ा होगा अकेला ?

और कौन स्वीकारेगा?

आज विश्व बारूद के ढेर पर नहीं,

अपने ही उन्नति के शिखर पर खड़े होकर 

खुद सागर में डूब मरेगा। 

क्या इंसान एक रोबोट ही रह क्या है ?

न संवेदनाए और न ही कोई आत्मा और दिल बचा है ,

फिर किस पर शासन करने को आतुर है।