रविवार, 13 मार्च 2022

किसको दूँ ?

 सोचती हूँ ,

जिंदगी किसके नाम करूँ,

वे जो अकेले है,

देख रहे है आशा से

कोई तो बाँट दे सुख-दूख उनका, 

कुछ पल उनको ही सौंप दूँ ।


काँप रहे हैं पाँव जिनके,

लड़खड़ा रही है छाँव जिनकी

थाम लूँ बाँह उनकी

मैं बन जाती हूँ ,

शेष जीवन का सहारा

मेरे सहारे चलो ।


बहुत है सम्पत्ति जिन पर

भरे है भंडार जिनके,

फौज है भीतर बाहर 

बस दो पल के मुहताज हैं,

बैठ कर पास उनके

दे सकूँ कुछ पल का साथ

बाँट लूँ  एकाकीपन का अहसास।


सुन लूँ उन्हें कुछ

आदेश जिनके दस्तावेज थे,

पत्ता खड़कने से पहले,

लेता था इजाजत उनकी,

अब 

असमर्थ होकर निराश्रित हो 

जी रहे खामोशी को,

कोई नहीं अब उनका,

देख ले उनकी तरफ अपनत्व से,

किसी को नहीं फुर्सत इतनी 

अपने सा समझ कर 

अपना बन जाऊँ।


मौन छा गया है,

छिन गई वाणी उनकी

पल भर उनके आँसुओं को पोंछ कर,

बेबसी के अंधेरे से

उबार ही लूँ तो कुछ बात बने।



4 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 17.3.22 को चर्चा मंच पर चर्चा - 4372 में दिया जाएगा| चर्चा मंच ब्लॉग पर आपकी उपस्थिति सभी चर्चाकारों की हासला अफजाई करेगी
    धनयवाद
    दिलबाग

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  2. मानवीय उच्चतम भावों का सुंदर अनुराग।
    बहुत बहुत सुंदर।

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  3. वाह!मन को छूते भाव।
    सराहनीय सृजन।
    सादर

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