औरत की इज्जत
एक चाय की प्याली हो गयी
जिसे
जिसने पिया - तो
अकेले नहीं दोस्तों के संग
क्या ये अब
लत बन चुकी है।
जो इंसान के जमीर में
शामिल नहीं है -
औरत की इज्जत करना।
और समाज उसे
कितनी जलालत भरी
नजर से देखती है,
घुट घुट कर जीने के लिए
मजबूर होती है,
क्योंकि
उस पीड़ा का अहसास
इस समाज ने
कभी किया ही नहीं होता है ,
उसकी नजर में
इज्जत तो सिर्फ
औरत की ही होती है
और
पुरुष के लिए
एक प्याली चाय है।
एक चाय की प्याली हो गयी
जिसे
जिसने पिया - तो
अकेले नहीं दोस्तों के संग
क्या ये अब
लत बन चुकी है।
जो इंसान के जमीर में
शामिल नहीं है -
औरत की इज्जत करना।
और समाज उसे
कितनी जलालत भरी
नजर से देखती है,
घुट घुट कर जीने के लिए
मजबूर होती है,
क्योंकि
उस पीड़ा का अहसास
इस समाज ने
कभी किया ही नहीं होता है ,
उसकी नजर में
इज्जत तो सिर्फ
औरत की ही होती है
और
पुरुष के लिए
एक प्याली चाय है।
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (23-07-2019) को "बाकी बची अब मेजबानी है" (चर्चा अंक- 3405) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत सुंदर और हकीकत से रूबरू कराती रचना।
जवाब देंहटाएंसत्य वचन!
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