कभी पलटती हूँ,
पन्ने डायरी के
यकीं नहीं होता
ये भी किसी की
होती है जिन्दगी।
पेज दर पेज
खोले पढ़े
तो लगा
जैसे किसी के छाले उधड़ गए।
उनसे रिसते लहू ने
पन्नों को धो दिया।
उजागर नहीं कर सकते
फिर भी
हर पन्ना
उसका अपना हो
ऐसा नहीं होता ,
किस दिन उसने
किसका दर्द जिया
किसका जहर पिया
या किसका हास लिया।
लिखा तो सब है
लेकिन
वे पन्ने एक बंद दस्तावेज हैं।
किसी के दर्द को
उजागर कैसे वो करे ?
दुनियां की समझ से परे
सारी जिन्दगी एक डायरी में कैद है
या सारी दुनिया के दर्द
उस डायरी में कैद हैं।
पन्ने डायरी के
यकीं नहीं होता
ये भी किसी की
होती है जिन्दगी।
पेज दर पेज
खोले पढ़े
तो लगा
जैसे किसी के छाले उधड़ गए।
उनसे रिसते लहू ने
पन्नों को धो दिया।
उजागर नहीं कर सकते
फिर भी
हर पन्ना
उसका अपना हो
ऐसा नहीं होता ,
किस दिन उसने
किसका दर्द जिया
किसका जहर पिया
या किसका हास लिया।
लिखा तो सब है
लेकिन
वे पन्ने एक बंद दस्तावेज हैं।
किसी के दर्द को
उजागर कैसे वो करे ?
दुनियां की समझ से परे
सारी जिन्दगी एक डायरी में कैद है
या सारी दुनिया के दर्द
उस डायरी में कैद हैं।
कुछ यादें ऐसी होतें हैं जिसे इन्सान बस अपने में समाना चाहता है. डायरी बहुत निजी चीज है..अच्छे बुरी स्मृतियों का जीवंत पिटारा. सुन्दर रचना.
जवाब देंहटाएंदर्द के पन्ने बंद ही रहें ... बहुत अच्छी प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत सी बातें, यादें डायरी में बंद रहें तो ही अच्छा रहता है ... अकेले में बात करने का भी तो मन होता है कभी कभी ..
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