गुरुवर तुमि नमन औ' वंदन बारम्बार ,
भाव सुमन अर्पित है करिए स्वीकार .
शिशुपन से जो थामा मुझको ,
पग पग पर ये ही डगर दिखाई .
काँपे पग डरसे या मन घबराया
तुरत ही अपनी अंगुली थी थमाई .
सत-असत की धूप -छाँव से
बचने की तुमने ही तो जुगत बताई .
रोशन की आस मुक्ति मार्ग की
फिर मन में एक अलख जगाई .
तम कितना ही गहरा क्यों न हो ?
किरण आस की उसमें दिखलाई .
साथ छोड़ने से पहले मुझको ,
पार होने को एक पतवार थमाई .
भाव सुमन अर्पित है करिए स्वीकार .
शिशुपन से जो थामा मुझको ,
पग पग पर ये ही डगर दिखाई .
काँपे पग डरसे या मन घबराया
तुरत ही अपनी अंगुली थी थमाई .
सत-असत की धूप -छाँव से
बचने की तुमने ही तो जुगत बताई .
रोशन की आस मुक्ति मार्ग की
फिर मन में एक अलख जगाई .
तम कितना ही गहरा क्यों न हो ?
किरण आस की उसमें दिखलाई .
साथ छोड़ने से पहले मुझको ,
पार होने को एक पतवार थमाई .
सतगुरु को सादर नमन
जवाब देंहटाएंरोशन की आस मुक्ति मार्ग की
जवाब देंहटाएंफिर मन में एक अलख जगाई .
bahut sundar naman .
आपकी इस शानदार प्रस्तुति की चर्चा कल मंगलवार २३/७ /१३ को चर्चा मंच पर राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आपका वहां हार्दिक स्वागत है सस्नेह ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर भाव .....
जवाब देंहटाएंगुरु महिमा का मान करते सुन्दर भाव ...
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जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति है
कभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें
http://saxenamadanmohan.blogspot.in/
बहुत सुंदर..
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर भाव लिए सार्थक रचना...
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