आँखें बंद करके नज़रें क्यों चुराई तुमने?
खोल कर चुराते तो भी न शिकायत होती .
कब क्या चाहा है तुमसे मुहब्बत ने मेरी?
बस याद करने की मुझे इजाजत तो होती .
बदले में कुछ भी गर चाहते तो फिर ये
दुनियां की नजर में तिजारत ही होती .
हक मेरे किसको दिए ये न शिकवा मुझको ?
गम भी मेरे न बाँटते इतनी इनायत तो होती .
अहसास मेरे होने का बनाये रखते जो दिल में
मेरे अहसासों की तेरे दिल में हिफाजत तो होती .
खोल कर चुराते तो भी न शिकायत होती .
कब क्या चाहा है तुमसे मुहब्बत ने मेरी?
बस याद करने की मुझे इजाजत तो होती .
बदले में कुछ भी गर चाहते तो फिर ये
दुनियां की नजर में तिजारत ही होती .
हक मेरे किसको दिए ये न शिकवा मुझको ?
गम भी मेरे न बाँटते इतनी इनायत तो होती .
अहसास मेरे होने का बनाये रखते जो दिल में
मेरे अहसासों की तेरे दिल में हिफाजत तो होती .
अहसास मेरे होने का बनाये रखते जो दिल में
जवाब देंहटाएंमेरे अहसासों की तेरे दिल में हिफाजत तो होती .
वाह आज तो कुछ नए रंग में हैं ... खूबसूरत गज़ल
शिकायतें भी बड़ी प्यारी हैं आपकी !
जवाब देंहटाएंहक मेरे किसको दिए ये न शिकवा मुझको ?
जवाब देंहटाएंगम भी मेरे न बाँटते इतनी इनायत तो होती .
बहुत सुन्दर.
वाह बहुत खूब अंतिम पंक्तियों ने समा बांध दिया :)
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टी की चर्चा शनिवार(20-7-2013) के चर्चा मंच पर भी है ।
जवाब देंहटाएंसूचनार्थ!
behtree aur khusurat gazal...
जवाब देंहटाएंबहुत ही कोमल भाव लिए भावपूर्ण अभिव्यक्ति...
जवाब देंहटाएंअहसास मेरे होने का बनाये रखते जो दिल में
जवाब देंहटाएंमेरे अहसासों की तेरे दिल में हिफाजत तो होती--
बहुत ही भावपूर्ण अभिव्यक्ति!
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बहुत उम्दा भावपूर्ण प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...
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