गुरुवार, 18 जुलाई 2013

शिकायत !

 आँखें बंद करके नज़रें  क्यों  चुराई तुमने?
खोल कर चुराते तो भी न शिकायत होती .

कब क्या  चाहा है तुमसे  मुहब्बत ने मेरी?
बस याद करने की  मुझे इजाजत तो  होती .

बदले में कुछ भी गर चाहते  तो फिर ये 
दुनियां  की नजर में  तिजारत ही होती .

हक मेरे  किसको  दिए ये न शिकवा मुझको ?  
गम भी मेरे न बाँटते इतनी इनायत तो होती .

अहसास मेरे होने का बनाये रखते जो दिल में 
मेरे अहसासों की तेरे दिल में हिफाजत तो होती . 

9 टिप्‍पणियां:

  1. अहसास मेरे होने का बनाये रखते जो दिल में
    मेरे अहसासों की तेरे दिल में हिफाजत तो होती .

    वाह आज तो कुछ नए रंग में हैं ... खूबसूरत गज़ल

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  2. शिकायतें भी बड़ी प्यारी हैं आपकी !

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  3. हक मेरे किसको दिए ये न शिकवा मुझको ?
    गम भी मेरे न बाँटते इतनी इनायत तो होती .

    बहुत सुन्दर.

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  4. वाह बहुत खूब अंतिम पंक्तियों ने समा बांध दिया :)

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  5. आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा शनिवार(20-7-2013) के चर्चा मंच पर भी है ।
    सूचनार्थ!

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  6. बहुत ही कोमल भाव लिए भावपूर्ण अभिव्यक्ति...

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  7. अहसास मेरे होने का बनाये रखते जो दिल में
    मेरे अहसासों की तेरे दिल में हिफाजत तो होती--
    बहुत ही भावपूर्ण अभिव्यक्ति!
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  8. बहुत उम्दा भावपूर्ण प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...

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