सोमवार, 18 फ़रवरी 2013

ओ गांधारी जागो !




ओ गांधारी जागो !
जानबूझ कर 
मत बाँधो आंँखों पर पट्टी,
सच को न देखने का 
बहाना सब खोज रहे हैं, 
सिर्फ गला फाड़ कर चीखने से 
 आँख बंद कर चिल्लाने से 
मानव नहीं बनते है।  
गांधारी अपनी 
आँखो पर पट्टी खोलने का   
अब वक्त आ गया है,
 दुःशासन को नहीं
जन्म दो अर्जुन का।
अब अनुगमन का नहीं,
अग्रगमन के लिए हो सज्ज 
अपने घर के लाडलों को
 किसी शकुनि के हाथ में नहीं, उसके
साथ ले
द्रौपदी को बेइज्जत नहीं
करने की सीख विद्या होगी तलवार, 
 अब गांधारी नहीं
बल्कि कुंती में शामिल होना होगा।
पांडव जैसे
अपने पुत्रों को
इस देश की मिट्टी की गरिमा से
वंचित कर देंगे।
ये काम सिर्फ तुम्हारे जैसा हो सकता है, सिर्फ तुम्हारे जैसा हो  
सकता है, सिर्फ तुम्हारे और तुम्हारे जैसा हो सकता है। सत्ता का दीवाना या हवस का मालिकाना हक अहम से सराबोर बेटों की अब जरूरत नहीं है तो तुम भी सीखो हो अपने वंश के नाश की त्रासदी भरी है अब अपने लाडलों की खुली आंखों से अपने कोख को लज्जित होने से  बचाओगे। तभी तो भविष्य में इस भारत में कई महाभारत के युद्ध की कहानियां सुनने को मिलेंगी


















। 

18 टिप्‍पणियां:

  1. पट्टी तो अपरोक्ष रूप से युद्ध का आह्वान है - वह भी गलित मनोकामना की

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  2. तभी तो
    भविष्य में
    इस भारत में
    कई महाभारत के युद्ध
    टाले जा सकेंगे .
    बेहद सार्थक अभिव्‍यक्ति

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  3. बहुत बढ़िया है
    आदरेया-शुभकामनाये-

    धारी आँखों पे स्वयं, मोटी पट्टी मातु ।
    सौ-सुत सौंपी शकुनि को, अंधापन अहिवातु ।
    अंधापन अहिवातु, सुयोधन दुर्योधन हो ।
    रहा सुशासन खींच, नारि का वस्त्र हरण हो ।
    कुंती सा क्यूँ नहीं, उठाई जिम्मेदारी ।
    सारा रविकर दोष, उठा अंधी गांधारी ।

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  4. बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति,आभार.

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  5. गान्धारी सो नहीं रही है!
    --
    आज की गन्धारी ने तो जान-बूझकर आखों पर पट्टी बाँध ली है!

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  6. अब अपने लाडलों की परवरिश
    खुली आँखों से
    जागरूक होकर
    अपनी कोख को
    लज्जित होने से
    बचाना होगा।
    तभी तो
    भविष्य में
    इस भारत में
    कई महाभारत के युद्ध
    टाले जा सकेंगे .

    खुबसूरत नहीं एक महान आह्वान

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  7. सार्थक, मनोकामना शुभकामनाये

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  8. बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति..........

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  9. आँखों पर पट्टी बाँध कर अपना असंतोष व्यक्त किया था -पर संतान के प्रति उदासीनता गांधारी की भूल थी.

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  10. माँ को सचेत करती सशक्त रचना .... पट्टी तो खोलनी ही पड़ेगी ।

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  11. क्या खूब कहा आपने वहा वहा बहुत सुंदर !! क्या शब्द दिए है आपकी उम्दा प्रस्तुती
    मेरी नई रचना
    प्रेमविरह
    एक स्वतंत्र स्त्री बनने मैं इतनी देर क्यूँ

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  12. क्या खूब कहा आपने वहा वहा बहुत सुंदर !! क्या शब्द दिए है आपकी उम्दा प्रस्तुती
    मेरी नई रचना
    प्रेमविरह
    एक स्वतंत्र स्त्री बनने मैं इतनी देर क्यूँ

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  13. बेहद सार्थक रचना और सही आव्हान
    सही शिक्षा और संस्कार देना हमारी ही जिम्मेदारी है.

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  14. सार्थक आह्वान है रेखा जी ! आज की नारी को गांधारी बन कर नहीं रहना है उसे तो अपने बच्चों में सद्गुण एवं मानवीयता को विकसित करना ही होगा तभी यह भारत सन्मार्ग पर अग्रसर हो सकेगा ! सशक्त प्रस्तुति के लिए बधाई !

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  15. प्रभावशाली एवं सार्थक रचना ....

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