हम गुलामी के दिनों से ही
पश्चिम को
हसरत भरी निगाहों से
देखते थे
धीरे धीरे
उसको जीवन में उतारने लगे।
दे दी बच्चों को
बचपन से ही आज़ादी,
अपने मन से जीने का हक
लेकिन चूके हम इस जगह
अधूरी ही शिक्षा दी।
हम खुद भी अधकचरी
सभ्यता और संस्कृति को लिए
भटक रहे थे।
उन्हें आत्मनिभर होने का
पाठ सिखाना भूल गए।
वे महत्वकांक्षी तो बने
लेकिन हमारी बैशाखी पर
और बिना पर उगे ही
ऊँची उड़ान का सपना देखने लगे,
उनकी तरह से परिश्रम करना,
आत्मनिभर होने का जज्बा,
और लगन नहीं सिखाई ।
हमने उन्हें आजादी के साथ
वो सब दिया जिसकी कीमत
उन्हें पता ही नहीं थी ।
भटकने लगे वे दिशा
बेलगाम होकर
उत्श्रंखल से आचरण
करने लगे।
ये दोष उनका नहीं हमारा है,
हमारी परवरिश और संस्कार
अधूरे रह गए
और वे जीवन के गलियारों में
बिना सबब भटक गए।
हमारी नजर में ही
हमारी संस्कृति की गरिमा
खो गयी .
हमारी अधकचरी सोच ने
हमें कहीं का नहीं छोड़ा
कभी वे नादानी में
कर बैठे अपराध
वह जिसका अर्थ भी
उनको पता नहीं था .
और हम उन्हें बता न सके
दोषी वे नहीं है
दोषी तो हम ही हुए न,
अब भी समय है
संभलना हमें होगा
खोल कर अपनी थाती
फिर से सबक लें हम
अपनी माटी का मान और महक
अब भी बचा लें ,
खुद को मुक्त कर लें
उस पश्चिम की
मृग मरीचिका से .
अभी देर नहीं हुई है
खुद पहले लौटे
सत्य , संयम और सदाचार में
आने वाले खुद उसमें बध जायेंगे .
फिर से
राम. कृष्ण , बुद्ध से
चरित्र इस धरती पर पैदा होंगे।
हम अभी बहुत नहीं भटके हैं
वापस आने के रास्ते
अभी बंद नहीं हुए हैं,
कदम पीछे लाकर
इसी धरती के लिए
जीने और जीते रहने का संकल्प करेंगे ।
पश्चिम को
हसरत भरी निगाहों से
देखते थे
धीरे धीरे
उसको जीवन में उतारने लगे।
दे दी बच्चों को
बचपन से ही आज़ादी,
अपने मन से जीने का हक
लेकिन चूके हम इस जगह
अधूरी ही शिक्षा दी।
हम खुद भी अधकचरी
सभ्यता और संस्कृति को लिए
भटक रहे थे।
उन्हें आत्मनिभर होने का
पाठ सिखाना भूल गए।
वे महत्वकांक्षी तो बने
लेकिन हमारी बैशाखी पर
और बिना पर उगे ही
ऊँची उड़ान का सपना देखने लगे,
उनकी तरह से परिश्रम करना,
आत्मनिभर होने का जज्बा,
और लगन नहीं सिखाई ।
हमने उन्हें आजादी के साथ
वो सब दिया जिसकी कीमत
उन्हें पता ही नहीं थी ।
भटकने लगे वे दिशा
बेलगाम होकर
उत्श्रंखल से आचरण
करने लगे।
ये दोष उनका नहीं हमारा है,
हमारी परवरिश और संस्कार
अधूरे रह गए
और वे जीवन के गलियारों में
बिना सबब भटक गए।
हमारी नजर में ही
हमारी संस्कृति की गरिमा
खो गयी .
हमारी अधकचरी सोच ने
हमें कहीं का नहीं छोड़ा
कभी वे नादानी में
कर बैठे अपराध
वह जिसका अर्थ भी
उनको पता नहीं था .
और हम उन्हें बता न सके
दोषी वे नहीं है
दोषी तो हम ही हुए न,
अब भी समय है
संभलना हमें होगा
खोल कर अपनी थाती
फिर से सबक लें हम
अपनी माटी का मान और महक
अब भी बचा लें ,
खुद को मुक्त कर लें
उस पश्चिम की
मृग मरीचिका से .
अभी देर नहीं हुई है
खुद पहले लौटे
सत्य , संयम और सदाचार में
आने वाले खुद उसमें बध जायेंगे .
फिर से
राम. कृष्ण , बुद्ध से
चरित्र इस धरती पर पैदा होंगे।
हम अभी बहुत नहीं भटके हैं
वापस आने के रास्ते
अभी बंद नहीं हुए हैं,
कदम पीछे लाकर
इसी धरती के लिए
जीने और जीते रहने का संकल्प करेंगे ।
संकल्प के साथ लिखी सुन्दर रचना!
जवाब देंहटाएंRam , Krishnn aur Budh ke aadarsh bachchon ko kaun bataa payega ?
जवाब देंहटाएंaur bataa bhi de koi to chalna kaun chahega ?
पता नहीं हम दोषी हैं या आज की हवा ..... कुछ बताना भी चाहें तो कोई सुनता ही कहाँ है.... आज की पीढ़ी को हम लोग बेवकूफ नज़र आते हैं .....हर बात के लिए गूगल सर्च किया जाता है ....
जवाब देंहटाएंकल 08/06/2012 को आपकी यह पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
जवाब देंहटाएंधन्यवाद!
अति सुन्दर
जवाब देंहटाएंआपकी रचना टिप्पणी की मोहताज नहीं है