सोमवार, 2 अप्रैल 2012

हाँ मैं गुनाहगार हूँ !

मुझ पर इल्जाम है
कि मैंने अपना ईमान बेचा है,
मैं स्वीकारता हूँ
ये सच है.
लेकिन कभी किसी ने
मेरे चारों ओर खड़े
उन खरीदारों की ओर देखा है,
जो मोटे मोटे थैले लिए खड़े हें
क्या वे गुनाहगार नहीं?
जब खरीदार नहीं होगा,
तो कौन बिकेगा और कौन बेचेगा?
कब तक बच कर रहता?
क्या माँ बाप को
दम तोड़ते देखता रहता ?
दवा के पर्चों पर
अपनी बेबसी की मुहर लगा कर
कूड़े में फ़ेंक देता
या फिर
उन्हें मरते हुए देखता
या फिर किसी वृद्धाश्रम में
डाल कर हाथ धो लेता
बच्चों के पेट भरने को
पत्नी के तन ढकने को
कहाँ से लाता पैसे?
मिलता तो कम
देने वाले ही छीन लेते हें
कहाँ तक खुद को बेचता?
ईमान बेच कर
माँ बाप को तो बचा लिया,
बच्चों को तो पढ़ा लिया
जब सारी दुनियाँ बेईमान है,
कर रही है कुकृत्य
बटोर रही है तालियाँ और वाहवाही
मैंने किसी की हत्या तो नहीं की?
मैंने किसी का घर तो नहीं उजाडा?
किसी दिए की रोशनी तो नहीं छीनी?
फिर मैं गुनाहगार क्यों?
मेरे पास इमारतें नहीं ,
मेरे पास गाड़ियाँ नहीं,
पत्नी के पास जेवरों का ढेर भी नहीं,
बच्चों ने किराये की साइकिल लेकर
स्कूल जाना सीखा है
फिर भी
गुनाहगार हूँ मैं
अदालत का तलबगार हूँ
मैं,
क्योंकि गरीब का ईमान
चर्चा का विषय होता है
जो सरेआम बेच रहे हें,
इस देश को
उनकी ओर अंगुली उठाकर तो देखो
अंगुली ही नहीं
पूरा हाथ ही नहीं रहेगा
जबान खोलकर तो देखो
खामोश कर दिए जाओगे
क्योंकि
उनका ईमान मंहगा है
उनकी इज्जत पर भारी है
कीमत तो बस कम
इस दुनियाँ में हमारी है
और
इसी जगह
मैं और मेरी आत्मा हारी है

9 टिप्‍पणियां:

  1. bahut achcha likha hai sateek sarthak
    bilkul sach yahi to ho raha hai aajkal aaj ko aaina dikhati hui post.

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  2. क्या बात है , लाजवाब शब्द सयोंजन , बेहतरीन रचना .

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  3. कीमत तो बस कम
    इस दुनियाँ में हमारी है
    और
    इसी जगह
    मैं और मेरी आत्मा हारी है।

    सटीक लिखा है ....

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  4. ्बेबसी की कोई कीमत नही …………एक सशक्त अभिव्यक्ति।

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  5. बहुत सुन्दर और सशक्त अभिव्यक्ति..सटीक रचना...

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  6. कीमत तो बस कम
    इस दुनियाँ में हमारी है
    और
    इसी जगह
    मैं और मेरी आत्मा हारी है।
    सार्थक व सटीक पंक्तियां ...

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  7. आज की वस्तविकता को दर्शाती ये रचना बहुत ही सुंदर है।

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  8. दुनिया की ये ही रीत हैं .....और ये ही आज का सच

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