सोमवार, 2 जनवरी 2012

हर दिन नव वर्ष !

नव वर्ष की रात की चलती सर्द हवाएं ,

सर्द न कर सकीं उनके फन और हौसलों को,


लोग लवरेज जोश भरे इरादों से नाचे रात भर ,

उनके हाथ चलते रहे अपने अपने साजों पर ।


दूसरों की खुशियों में शामिल हों या न हो,

वे साजों पर अंगुलियाँ रात भर नचाते रहे ।


लेकिन उनकी उँगलियों के नाचने से जुड़ी थीं,

कुछ लोगों की रोटी, दवा , फीस औ' किराया।


वे बस इसी मजबूरी में नववर्ष का स्वागत,

अपने लाडलों को गले से लगाकर न कर सके।


फिर सुबह की सर्द हवाएं और तेज बौछारों में

जब उपहार लिए लौटे तो गले से लगा लिया ।


यही नववर्ष है जब चेहरों पर मुस्कान खिले,

दिन कोई भी हो खुशियों, उम्मीदों का दीप जले।


8 टिप्‍पणियां:

  1. नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनायें...

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  2. नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनायें.

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  3. नव वर्ष पर सार्थक रचना
    आप को भी सपरिवार नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनायें !

    शुभकामनओं के साथ
    संजय भास्कर

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  4. आह ..कितनी बेबसी लिख दी ...आपने अपनी इस कविता में ...हम जैसे लोग परिवार के साथ जश्न मनाते हैं और दूसरी और हम सबका मन बहलाने वाले ...अपनों से दूर रहते हुए भी उनके दिल के करीब रहते हैं ...बहुत खूब


    नववर्ष मंगलमय हो

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  5. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनायें!

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  6. बेहतरीन........आपको भी नववर्ष की शुभकामनायें

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