आज तीन वर्ष पूर्ण हुए मेरी ब्लोगिंग में आये हुए। जब ब्लॉग बनाया था तो इसके बारे में कुछ भी जानती थी न एडिटिंग और न तस्वीरें लगाना और न दूसरों के ब्लॉग पर जाना। बहुत अधिक जानकारी तो अभी भी नहीं है बस काम चला लेती हूँ। फिर भी अपने ब्लॉग परिवार के लोगों के प्यार से अभिभूत हूँ , जहाँ बिना देखे बिना मिले भी एक स्नेह का रिश्ता बना हुआ है जहाँ सभी एक दूसरे के सुख से सुखी और दुःख से दुखी अनुभव करते हें। सांत्वना देते हें और साहस भी।
बेटी के विवाह के कामों में इतनी व्यस्त है कि मैं इस बात को भूल ही गयी थी कि आज ब्लॉग के तीन वर्ष पूरे हो रहे हें इसे याद दिलाया यशवंत माथुर ने 'नई पुरानी हलचल' में मेरे ब्लॉग से पहली रचना उठा कर फिर से यादें ताजा करके। इस पोस्ट के लिए सारा श्रेय यशवंत माथुर को ही जाता है ।
साल दर साल
यूं ही दिन दिन बनकर
गुजरते रहे,
हम भी
अपने तेरे और सबके
ख़ुशी, गम और यादें
समेट कर शब्दों में
इन पृष्ठों पर उतारते रहे।
जब पैरों पर खड़े हुए
चलना आता नहीं था,,
हाथ थाम कर
लिखने से लेकर सजाना तक
सबने प्रेम से सिखाया।
किसी ने दिशा दी,
किसी ने शिक्षा दी,
किसी ने प्यार दिया
और किसी ने प्यार लिया,
रिश्ते बने और टूटे भी
सबके साक्षी ये पृष्ठ
आगे भी इसी तरह से
चलते रहें।
कभी आलोचना , कभी प्रशस्ति ,
कभी आरोप तो कभी प्रत्यारोप लिए
हम साथ चलते रहे।
आप सब को आभार साथ चलने का
मुझे पढ़ने और समझने का,
आभार बार बार और फिर बार बार।
जीवन में बिखरे धूप के टुकड़े और बादल कि छाँव के तले खुली और बंद आँखों से बहुत कुछ देखा , अंतर के पटल पर कुछ अंकित हो गया और फिर वही शब्दों में ढल कर कागज़ के पन्नों पर. हर शब्द भोगे हुए यथार्थ कीकहानी का अंश है फिर वह अपना , उनका और सबका ही यथार्थ एक कविता में रच बस गया.
मंगलवार, 20 सितंबर 2011
सोमवार, 19 सितंबर 2011
कहीं ये तो नहीं?
जीवन के आकाश में
घिरी ये घटायें
न छंटती हें
न बरसती हें,
इनका गहन अन्धकार
दिन को भी
रात बना देता है।
निराशा का जनक बनकर
हताशा का मार्गदर्शक
बनकर खड़ा रहता है।
मन का उजाला
कहाँ तक रहें रोशन करे,
हौसले के दियालों को?
कभी कभी तो
वो उजाला भी स्याही में लिपट जाता है।
लोग कहते हें
सुबह जरूर आएगी
लेकिन कब?
कहीं इस सुबह का इन्तजार
मौत की घड़ी
तो न बन जाएगा?
घिरी ये घटायें
न छंटती हें
न बरसती हें,
इनका गहन अन्धकार
दिन को भी
रात बना देता है।
निराशा का जनक बनकर
हताशा का मार्गदर्शक
बनकर खड़ा रहता है।
मन का उजाला
कहाँ तक रहें रोशन करे,
हौसले के दियालों को?
कभी कभी तो
वो उजाला भी स्याही में लिपट जाता है।
लोग कहते हें
सुबह जरूर आएगी
लेकिन कब?
कहीं इस सुबह का इन्तजार
मौत की घड़ी
तो न बन जाएगा?
शनिवार, 10 सितंबर 2011
दान !
एक पंडाल में
प्रवचन चल रहा था -
jeevan अर्जन और विसर्जन
दोनों का ह़ी नाम है
यदि अर्जित किया है तो
उसे किसी न किसी रूप में
विसर्जित अवश्य करें.
ड्यूटी में लगा
एक पुलिसवाला -
साला ये कौन सी नई बात है,
मैं जब भी
कमाता हूँ,
गाली दिए बगैर
कोई टेंट ढीली नहीं करता
सो पहले गालियाँ देता हूँ
फिर लेता हूँ.
हो गया हिसाब बराबर
इस हाथ दिया और उस हाथ लिया.
बोलो गुरुदेव की जय !
प्रवचन चल रहा था -
jeevan अर्जन और विसर्जन
दोनों का ह़ी नाम है
यदि अर्जित किया है तो
उसे किसी न किसी रूप में
विसर्जित अवश्य करें.
ड्यूटी में लगा
एक पुलिसवाला -
साला ये कौन सी नई बात है,
मैं जब भी
कमाता हूँ,
गाली दिए बगैर
कोई टेंट ढीली नहीं करता
सो पहले गालियाँ देता हूँ
फिर लेता हूँ.
हो गया हिसाब बराबर
इस हाथ दिया और उस हाथ लिया.
बोलो गुरुदेव की जय !
बुधवार, 7 सितंबर 2011
रिश्तों की माप !
अभी तक
ये समझ नहीं आया
कैसे लोग
रिश्तों को लिबास की तरह
बदल लेते है ?
कुछ रिश्ते
जो खून में घुले होते हैं
माँ से जुड़े होते है
रगों में वे
खून को पानी में
बदल लेते हैं?
कहते हैं जिन्हें
वे दिल के रिश्ते हैं
समझ आते हैं
लेकिन फिर ऊब कर
उनसे भी
किसी और को
अजीज बना लेते हैं
और
उसी रिश्ते में
कैसे बदल लेते हैं?
ये रिश्ते हो चुके हैं
अब शतरंज के मोहरों की तरह
दूसरों की जगह पर
रखते हैं नजर
औ'
अपने खाने जरूरत पर
बदल लेते हैं?
एक की जगह लेने को
हर मोड पर
दो दो खड़े हैं
जरूरत पड़ी तो
चेहरे की रंगत को भी
बदल लेते हैं?
ये समझ नहीं आया
कैसे लोग
रिश्तों को लिबास की तरह
बदल लेते है ?
कुछ रिश्ते
जो खून में घुले होते हैं
माँ से जुड़े होते है
रगों में वे
खून को पानी में
बदल लेते हैं?
कहते हैं जिन्हें
वे दिल के रिश्ते हैं
समझ आते हैं
लेकिन फिर ऊब कर
उनसे भी
किसी और को
अजीज बना लेते हैं
और
उसी रिश्ते में
कैसे बदल लेते हैं?
ये रिश्ते हो चुके हैं
अब शतरंज के मोहरों की तरह
दूसरों की जगह पर
रखते हैं नजर
औ'
अपने खाने जरूरत पर
बदल लेते हैं?
एक की जगह लेने को
हर मोड पर
दो दो खड़े हैं
जरूरत पड़ी तो
चेहरे की रंगत को भी
बदल लेते हैं?