शुक्रवार, 11 मार्च 2011

कब जाना तुमने?


अपने हिस्से के दर्द सबको ए दोस्त
खुद सहने पड़ते हैं ये कब माना तुमने?

आज जो हंसी की आवाजें सुन रहे हो,
कहकहों के दर्द को कब जाना तुमने?

जी लिया है दर्द जो मिला है मुझको,
तर आस्तीन का राज कब जाना तुमने?

आंसुओं से धुलकर धुंधली हो चुकी तस्वीर ,
उसके कितने बाकी अक्श ये कब जाना तुमने?

एक लम्हा भी कब जिए हैं खुद के लिए,
कितना खारा पानी पिया कब जाना तुमने?

हम तो उधार की जिन्दगी ही जिए हैं,
कितनी मौत मरे है कब जाना तुमने?

इक यही तमन्ना थी कि दीदार हो तेरे,
इसके बाद जिन्दगी कब चाही हमने?

13 टिप्‍पणियां:

  1. अपने हिस्से के दर्द सबको ए दोस्त खुद सहने पड़ते हैं ये कब माना तुमने?
    आज जो हंसी की आवाजें सुन रहे हो,कहकहों के दर्द को कब जाना तुमने?
    वाह सचमुच में जमाना संगदिल है . दुसरे का दर्द कोई समझ ले तो धरती जन्नत बन जाए .

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  2. ये दर्द जाना नही महसूस किया जाता है

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  3. • मानवीय संबंधों की कहानी को आपने बेहद आत्मीय शैली में सुनाया है।

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  4. जानने के बाद भी महसूस करना ज़रूरी है ...दर्द को भी खूबसूरत शब्द दिए हैं ..

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  5. दर्द कब जाना तुमने ...
    और दीदार के बाद जिंदगी कब चाही हमने ...
    विपरीत पक्षों की भावनाएं भी उलटी दिशा जैसी ही ...
    " उसकी आस्तीन कभी नाम न हुई ,
    मेरे आंसुओं को वो जानता कैसे "

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  6. ऐसे ही होते हैं सम्बन्ध ।--- कौन किसी का दर्द महसूस कर सकता है--
    खुशी गमी तकदीर की भोगे खुद किरदार
    बुरे वक्त मे हों नही साथी रिश्तेदार

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  7. चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी प्रस्तुति मंगलवार 15 -03 - 2011
    को ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..

    http://charchamanch.uchcharan.com/

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  8. आज जो हंसी की आवाजें सुन रहे हो,
    कहकहों के दर्द को कब जाना तुमने?

    बहुत सुन्दर एवं भावपूर्ण रचना ! बधाई एवं शुभकामनायें ! !

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  9. एक लम्हा भी कब जिए हैं खुद के लिए,
    कितना खारा पानी पिया कब जाना तुमने?

    सच है अपना दर्द खुद ही सहना होता है..कौन बांटता है इसको..बहुत मर्मस्पर्शी रचना..

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  10. अपने हिस्से के दर्द सबको ए दोस्त खुद सहने पड़ते हैं ये कब माना तुमने?
    bahut achcha likhi hain....

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