जो ये कलम चल रही है,
हर दिशा में
आग उगल रही है.
नाहक ही बन्दूक सी
हर समय गरजा करती है.
कभी इसके दर्द को समझो,
ये सच है
कि ये लिखती यथार्थ है
मगर
ये कोई न कोई दर्द बयां करती है.
चाहे वे शब्द
स्याही की जगह
आंसुओं से सने हों
शब्दों ने दर्द को
जीकर ही
कराह अपनी जो सुनाई
तभी तो वह विष वमन करती है.
सुनती है कितनी जबानों से
दर्द से सराबोर दास्तानें
उन्हीं में डूब कर
दर्द के अहसास को
पहले जीती औ'
फिर दास्तान बयां करती है.
well said, nice expressions
जवाब देंहटाएंबेहद संवेदनशील प्रस्तुति....
जवाब देंहटाएंवाह!
कुंवर जी,
umda prastuti
जवाब देंहटाएंhttp://sanjaykuamr.blogspot.com/
बेहतरीन....कलम से मन की संवेदना झलक रही है...
जवाब देंहटाएंदर्द के अहसास को
जवाब देंहटाएंपहले जीती औ'
फिर दास्तान बयां करती है.
बहुत ही खूबसूरती से संवेदनशील कलम कि सच्चाई बयाँ कर दी आपने...सुन्दर कविता
शब्दों ने दर्द को
जवाब देंहटाएंजीकर ही
कराह अपनी जो सुनाई
तभी तो वह विष वमन करती है.
यथार्थ
बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंभावनाओ को कलम ही तो अभिव्यक्त कर सबके सम्मुख लाती है
good one
जवाब देंहटाएंसुनती है कितनी जबानों से
जवाब देंहटाएंदर्द से सराबोर दास्तानें
उन्हीं में डूब कर
दर्द के अहसास को
पहले जीती औ'
फिर दास्तान बयां करती है.
-बिल्कुल सही कहा!! तभी तो प्रभाव छोड़ जाती है. सुन्दर!!!