शनिवार, 20 फ़रवरी 2010

कर्म करो कुछ ऐसे!

यदि नारी हो
तो क्या?
निर्बल मत बनो,
याचना के लिए
कर मत उठाओ,
कर्म कर उन्हें
सार्थक बनाओ ।
कर्म कभी होता निष्फल नहीं,
कम कभी अधिक भी देता है,
जन्म लेने की यही सार्थक दिशा होगी
ममता का जो सागर
ईश्वर ने दिया है
सिक्त कर प्रेम से
खुशी कुछ चेहरों पर लाओ
कभी इन हाथों से
उठाकर सीने से लगाओ
कभी इन हाथों से
आंसू किसी के सुखाओ
दीप एक आशा का
कर्म कर सबमें जगाओ
ज्योति उनके भी
मन में जलाकर
नई दिशा सबको दिखाओ
सोचो एक दीप जलाकर
प्रकाश कितनों को देता है
स्वयं को मिटा कर
रास्ता दिखा जाता है
हमसे सार्थक वही,
मनुज बनकर हम भी
क्यों न सार्थक हों

2 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही उम्दा व सीख देती लाजवाब कविता ...

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  2. खुशी कुछ चेहरों पर लाओ
    कभी इन हाथों से
    उठाकर सीने से लगाओ
    कभी इन हाथों से
    आंसू किसी के सुखाओ
    बहुत ही सुन्दर तरीके से आपने स्त्रियों को उनके गुण,उनके कर्त्तव्य और ..उनकी शक्ति का अहसास दिलाया है...प्रेरणामयी रचना

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