बावरे मन
एक नीड़ की खोज में,
कलह भरे अनंताकाश में
क्यों भटकता रहा?
चंद क्षण शान्ति के लिए
छान आया तू
कोना कोना धरती औ' गगन,
अथाह शैवलिनी तू
अंक में समाये
अतृप्त अधर क्यों तेरे रहे?
लिए आस जीवन की
कितने दर देखे तुमने
महज मृगमरीचिका है,
यह सब
क्या हैं रिश्ते , क्या हैं नाते?
दुनिया ख़ुद प्यासी है,
तुझसे भी बदतर है,
चल तेरा पिंजरा बेहतर है।
**प्रकाशित २० नवम्बर १९८० (दैनिक "आज "में )
http://indianwomanhasarrived2.blogspot.com/2008/10/blog-post_12.html
जवाब देंहटाएंyae link jarur daekahe rekha ji