मंगलवार, 14 अक्तूबर 2008

लावारिस - बावारिस

सुबह का अखबार
जब हाथ में आया
नजर पड़ी
एक तस्वीर पर
फिर उसका शीर्षक पढ़ा
सड़क पर फ़ेंक दिया
किसी सपूत ने
अपने अपाहिज और मृतप्राय पिता को,
उसने पाला होगा
बेटे बेटियों को
एक या दो होंगे
हो सकता है कि चार या पाँच हों।
सबको पाला होगा
हाथ से निवाला बनाकर खिलाया होगा
दुलराया और सहलाया होगा
फिर काबिल बनाकर
चैन कि साँस ली होगी
बुढापे कि लकड़ी
सहारे के लिए तैयार हो गई
पर पता नहीं कहाँ भूल हुई
लकड़ी बिच में ही चटक गई
औ' मृतप्राय जनक को सड़क पर पटक गई,
सड़क पर पड़े पड़े
दम तोड़ दी।
लोगों ने झाँका औ' किनारा कर लिया
शाम होने लगी
पुलिस आई औ' मृत्यु प्रमाण-पत्र बनवाकर
मुर्दाघर में लावारिशों में शामिल कर दिया,
लावारिस बना
दो दिन पड़ा रहा शव
बाद में लावारिस ही दफना दिया
पढ़कर यह दर्द कथा
दो ऑंसू टप-टप
गिरे अखबार पर
अनाम श्रद्धांजलि थी
या भविष्य में होनेवाली आशंका का भय
यह तो तय करेगा समय
यह तो तय करेगा समय।

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