मंगलवार, 1 जनवरी 2013

आगत का हो स्वागत !

आगत का हो  स्वागत , विगत की करें हम  विदाई ,
शांति के पुजारी हम खड़े हैं करने को न्याय की लड़ाई ।

रास्ते अपनी जिन्दगी का , हम सब कर रहे है तलाश 
इंसान में इंसान के प्रति , कुछ तो शेष रहें  अहसास ।

नहीं पता हमको , न्याय की ये जंग कहाँ  तक जायेगी ?
दिलों में लगी ये आग, कब तक जलेगी या बुझ जायेगी।

शक्ति है हमारी आवाज में औ'  बुलंद ही रखें साथ में ,
 मशाल भी अब तो  न्याय पाने तक रहेगी हर हाथ में।

चाहे वो हम टूट जाएँ किसी की सांस की तरह थक कर ,
समझे नहीं वो जज्बे को , सांस भी न लेंगे हम रुक कर ।

न्याय चाहिए बदले केलिए नहीं हम लिए मशाल खड़े हैं ,
अब  और आगे भी न हो कोई दिन ऐसा इस पर  अड़े हैं।

5 टिप्‍पणियां:

  1. प्रभावी लेखनी,
    नव वर्ष मंगलमय हो,
    बधाई !!

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  2. सुना था इक्कीस दिसम्बर को धरती होगी खत्म
    पर पाँच दिन पहले ही दिखाया दरिंदों ने रूप क्रूरतम
    छलक गई आँखें, लगा इंतेहा है ये सितम
    फिर सोचा, चलो आया नया साल
    जो बिता, भूलो, रहें खुशहाल
    पर आ रही थी, अंतरात्मा की आवाज
    उस ज़िंदादिल युवती की कसम
    उसके दर्द और आहों की कसम
    हर ऐसे जिल्लत से गुजरने वाली
    नारी के आबरू की कसम
    जीवांदायिनी माँ की कसम, बहन की कसम
    दिल मे बसने वाली प्रेयसी की कसम
    उसे रखना तब तक याद
    जब तक उसके आँसू का मिले न हिसाब
    जब तक हर नारी न हो जाए सक्षम
    जब तक की हम स्त्री-पुरुष मे कोई न हो कम
    हम में न रहे अहम,
    मिल कर ऐसी सुंदर बगिया बनाएँगे हम !!!!
    नए वर्ष मे नए सोच के साथ शुभकामनायें.....
    .
    http://jindagikeerahen.blogspot.in/2012/12/blog-post_31.html#.UOLFUeRJOT8

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  3. आने वाले हर लम्‍हे से कहना ही होगा
    हर पल को शुभ कर देना तुम इतना
    जिससे मजबूत हों इमारे इरादे
    ... बिल्‍कुल सही आपने
    सादर

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  4. बढ़िया प्रस्तुति ..
    नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाये..

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  5. बहुत सुंदर एवं सार्थक रचना...

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