सावन में
अब फुहारें नहीं पड़ती
न हरी चूड़ियों की
खनखनाहट सुनाई देती है।
हरियाली तीज
अब हरियाली को तरसती है ,
शादी के बाद
पहला सावन मायके के होता था ,
सावन होता था
बेटियों का त्यौहार
मैके से विदा नहीं होती थीं
माँ की देहरी पर
सखी सहेलियों के साथ
हरी चूड़ियां
फूलों के गजरे
रंग बिरंगी साड़ियां
जेवर से लदी
गुड़ियों सी बेटियां
सुखी जीवन का ऐलान करती थीं।
अब कब विदा हुई ?
कब आएगी ?
नहीं जानते जननी और जनक भी।
पेड़ों पर पड़े झूले
फुहारों में भीगती
बेटियों की पेंगे
अब देखने को आँखें तरसती है।
हम आगे बढ़ गए
और रिश्ते बिखर गए
या तो बेटी है
या बेटा है घर में
इसी को ही कुछ बना लें,
इस चिंता ने
रिश्तों को खत्म कर दिया।
सूनी कलाइयां
और
राखी के दिन उदास बहन
बस यही रह गया है.
अब निकल जाते हैं त्यौहार
और सोचने का वक्त नहीं होता।
अब सावन , भादों ,
बैसाख जेठ में कोई अंतर नहीं रहा
बारहों मास बराबर।
सावन भी अब उन्हीं में है।