मंगलवार, 23 जून 2015

हाइकू !

कुछ हाइकू रिश्ते के नाम पर ----

रिश्तों में प्रेम 
रिश्तों के बीच खून 
कौन गहरा ?
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रिश्तों को ढोना 
बोझ से भी कठिन 
उतार ही दो। 
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घर बनेगा
मकान ये निर्जीव
सींचो प्रेम से। 
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रिश्ते की डोर 
है बड़ी कमजोर 
थामे रहना। 
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प्रेम से भरो

गागर रिश्तों की 
मन तृप्त हो। 
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सोमवार, 22 जून 2015

माँ से मायका !

'म ' इस शब्द का
कितना गहरा रिश्ता है ?
हर इंसान से
खासतौर पर
हर औरत से।
'म' से 'मैं'
''म' से 'मेरी /मेरा '
'म' से 'माँ'
'म' से 'मायका '
एक कहावत है न ,
माँ से मायका। .
पता नहीं कितना सोचकर
कितने अहसासों के बदले
कितने आहत मनों ने
इसको गढ़ा होगा।
कभी गुजरते हुए  सड़क पर
जाती हुई बसों पर
देखकर 'मायके के शहर /गाँव का नाम
आँखों में चमक  आ जाती थी।
मन करता था
दौड़कर बैठ जाऊं
औ'
पहुँच जाऊं माँ के पास।
जब से माँ गईं 
अब भी वह शहर वही है ,
वह घर भी है ,
और घर में रहने वाले सभी लोग.
लेकिन 
सिर्फ माँ तुम नहीं हो। 
रोका नहीं किसी ने 
बाँधा भी नहीं किसी ने 
बुलाते हैं उसी तरह 
फिर भी 
पता नहीं क्यों ?
अब माँ वो अपनापन 
क्यों दिल को छूता नहीं है?
अब भी बसें वहां जाती हैं ,
मेरे सामने से भी गुजरती हैं ,
लेकिन 
अब 
अब नहीं रही वो ललक 
नहीं आती है 
मेरी आँखों में वो चमक 
क्यों माँ ?
क्या जो कहा  गया था वो
वो सच ही है न। 
क्योंकि वो अब 
आगे वाली पीढ़ी के लिए 
मायका बन चुका है। 
मेरा मायका तो माँ 
तुम्हारे साथ ही चला गया। 
मैं इस शब्द के साथ 
बहुत अकेली रह गयी।

शुक्रवार, 19 जून 2015

वजन रिश्तों का !

आज निकले
मन की तराजू लेकर
तौलने वजन रिश्तों का ।
हमने तो जीवन भर
दिया सबको
अंतर मन से वांछित ,
पर शाम तक
लौटने के समय तक
कोई मुझे वक्त ही न दे पाया
तौलती मैं क्या ?
सजे हुए घर
मेज पर लगे नाश्ते की प्लेटें
या हाथ बांधे खडी
उनके कामगरों की फौज ।
खाली तराजू ,
भरा मन औ'
रिक्तता का अहसास
लेकर वापस आ गयी।