रिश्ते बनते हैं
बिगड़ते हैं और
और फिर ख़त्म हो जाते हैं।
कहते हैं
खून के रिश्ते
ऊपर वाला बनाता है
वे अमिट होते हैं
खून के रंग से
गहरे और रगों में
बहते हैं।
वक़्त ने रिश्तों की
परिभाषा बदल दी ,
लक्ष्मी ने खून को
पानी कर दिया।
स्वार्थ ने अपने को
पराया कर दिया।
बस एक रिश्ता आज भी
जिन्दा है उसी तरह
वो रिश्ता है
दर्द का रिश्ता।
भुक्तभोगी समझ लेता है
अपने से पीड़ित का दर्द
फिर अपने सा दर्द समझ कर
उसके काँधे पर रख कर हाथ
जो सहारा देता है ,
उसको लिख कर बयान करना
नामुमकिन है।